आखिर शरिया कोर्ट क्या है और इसे मीडिया क्यों तोड़ मरोड़ के पेस किया जा रहा है पढ़े Fakharpur City
आगामी मीटिंग में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भारत के हर ज़िले में शरिया कोर्ट या दारुल क़ज़ा स्थापित करने के एजेंडे पर विचार करने की बात की है
मीडिया में यह बात आते ही एक हंगामा खड़ा हो गया है, दक्षिणपंथी और उदारवादी दोनों ओर से इसकी मुखालिफत की जा रही है और इसे संविधान के विरुद्ध बताया जा रहा है, तथा बोर्ड को भारतीय न्यायालय पर विश्वास नही करने वाला बताया जा रहा है साथ ही इसके आड़ में मुसलमानो को देशद्रोही और संविधान विरोधी कहा जा रहा है। अब आइये बिंदुवार देखें कि क्या वाकई शरिया बोर्ड एक समानांतर न्याय व्यवस्था है या जो कहा जा रहा है वो दुर्भावना से प्रेरित है।
1. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ साल पहले अपने एक फैसले में कहा है कि शरिया कोर्ट समानांतर न्याय व्यवस्था नही बल्कि एक अबाध्यकारी सुलह कराने की व्यवस्था है जो सामुदायिक सिविल मामलों में की जाती है।
3. अब भारतीय कानून क्या कहता है ज़रा देखें- सिविल प्रोसीजर एक्ट- 89 कहता है कि सिविल मामलों में कोर्ट से बाहर सुलह सफाई की जा सकती है और इसके लिए दोनो पार्टी के रज़ामन्दी पंचायती की व्यवस्था की जा सकती है, और यह एक्ट इसे प्रोत्साहित करता है कि कोर्ट से बाहर अर्टबीट्ररी व्यवस्था हो ताकि कोर्ट में केस नही आये। इसी कानून के मद्देनजर कॉर्पोरेट सेक्टर में बड़ी कंपनियां अपने विवाद सुलझाती हैं, और जिसमे दुनिया के जिस क़ानून पर सहमति बनती है उसके अनुसार अपना विवाद सुलझा लेती हैं। जिसपर मीडिया खामोश रहता है और उसे संविधान की याद नही आती है, क्योंकि वो जानता है कि कानून इसकी इजाजत देता है। असल मे यहाँ शरिया शब्द देखते ही मीडिया को विशेष समुदाय के विरुद्ध दुर्भावना फैलाने का मौका मिलता है, जो अक्सर प्रायोजित होता है। इसी एक्ट के तहत कोई भी समुदाय, अपना सुलह सफाई केंद्र बना सकता है।
4. इस प्रकार के कोर्ट का सबसे बड़ा फायदा यह कि इसमें फैसले जल्दी,कम खर्च में होते हैं जो कि न्यायालय में नही होता है। और अगर कोई पार्टी संतुष्ट नही होती तो वो न्यायालय जा सकती है।इनके फैसले बाध्यकारी नही होकर सही मशविरा होता है, और आपको जानकर खुशी होगी कि 99% फैसले में पार्टी संतुष्ट रही है| अभी भारत मे 80 शरिये कोर्ट चल रहे हैं जिसमे अकेले इमारत शरिये बिहार 50000 फैसले दे चुका है।इसमें ज़्यादातर महिलाएं जाती है और उनके हक में फैसले हुए हैं।
उपरोक्त बातों से पता चलता है कि शरिया कोर्ट एक सुलभ,त्वरित,और सस्ता सुलह सफाई केंद्र है जिसकी इजाज़त भारतीय कानून देता है।यह गरीबों, महिलाओं,शोषितों के लिए वरदान है। और भारतीय कोर्ट पर से केस के बोझ को कम करने में सहायक है
साभार वॉइस हिन्दी आप हमसे Facebook Twitter Instagram YouTube Google Plus पर भी जुड़ सकते हैं
फ़ोटो साभार गूगल |
मीडिया में यह बात आते ही एक हंगामा खड़ा हो गया है, दक्षिणपंथी और उदारवादी दोनों ओर से इसकी मुखालिफत की जा रही है और इसे संविधान के विरुद्ध बताया जा रहा है, तथा बोर्ड को भारतीय न्यायालय पर विश्वास नही करने वाला बताया जा रहा है साथ ही इसके आड़ में मुसलमानो को देशद्रोही और संविधान विरोधी कहा जा रहा है। अब आइये बिंदुवार देखें कि क्या वाकई शरिया बोर्ड एक समानांतर न्याय व्यवस्था है या जो कहा जा रहा है वो दुर्भावना से प्रेरित है।
1. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ साल पहले अपने एक फैसले में कहा है कि शरिया कोर्ट समानांतर न्याय व्यवस्था नही बल्कि एक अबाध्यकारी सुलह कराने की व्यवस्था है जो सामुदायिक सिविल मामलों में की जाती है।
2. वर्तमान में भारतीय न्याय व्यवस्था पर लगभग 4 करोड़ केस का बोझ है जिसकी डेली सुनवाई की जाए तो एक अनुमान के अनुसार 366 वर्ष लगेंगे। केस के हिसाब से एक अनुमान के मुताबिक 1 लाख 30 हज़ार जज चाहिए जबकि कुल सभी कोर्ट मिलाकर केवल 20 हज़ार रिक्तियां है, जिनमे 5 हज़ार पद रिकत हैं। इसलिये पंचायती राज में सरपंच की व्यवस्था है ताकि पंचायत के छोटे मामले और सिविल मामले पंचायतों में ही निपटाकर कोर्ट से बोझ कम किया जा सके
3. अब भारतीय कानून क्या कहता है ज़रा देखें- सिविल प्रोसीजर एक्ट- 89 कहता है कि सिविल मामलों में कोर्ट से बाहर सुलह सफाई की जा सकती है और इसके लिए दोनो पार्टी के रज़ामन्दी पंचायती की व्यवस्था की जा सकती है, और यह एक्ट इसे प्रोत्साहित करता है कि कोर्ट से बाहर अर्टबीट्ररी व्यवस्था हो ताकि कोर्ट में केस नही आये। इसी कानून के मद्देनजर कॉर्पोरेट सेक्टर में बड़ी कंपनियां अपने विवाद सुलझाती हैं, और जिसमे दुनिया के जिस क़ानून पर सहमति बनती है उसके अनुसार अपना विवाद सुलझा लेती हैं। जिसपर मीडिया खामोश रहता है और उसे संविधान की याद नही आती है, क्योंकि वो जानता है कि कानून इसकी इजाजत देता है। असल मे यहाँ शरिया शब्द देखते ही मीडिया को विशेष समुदाय के विरुद्ध दुर्भावना फैलाने का मौका मिलता है, जो अक्सर प्रायोजित होता है। इसी एक्ट के तहत कोई भी समुदाय, अपना सुलह सफाई केंद्र बना सकता है।
4. इस प्रकार के कोर्ट का सबसे बड़ा फायदा यह कि इसमें फैसले जल्दी,कम खर्च में होते हैं जो कि न्यायालय में नही होता है। और अगर कोई पार्टी संतुष्ट नही होती तो वो न्यायालय जा सकती है।इनके फैसले बाध्यकारी नही होकर सही मशविरा होता है, और आपको जानकर खुशी होगी कि 99% फैसले में पार्टी संतुष्ट रही है| अभी भारत मे 80 शरिये कोर्ट चल रहे हैं जिसमे अकेले इमारत शरिये बिहार 50000 फैसले दे चुका है।इसमें ज़्यादातर महिलाएं जाती है और उनके हक में फैसले हुए हैं।
6 शरिये कोर्ट इंग्लैंड में भी चल रहे हैं। ये गलतफहमी दूर होना चाहिए कि शरिया कोर्ट खाप पंचायत से अलग है क्योंकि शरिया कोर्ट में क्रिमिनल मामले नही सुने जाते क्योंकि कानून इसकी इजाजत नही देता। क्रिमिनल केस केवल भारतीय पैनल कोड के तहत ही सुने जा सकते हैं
उपरोक्त बातों से पता चलता है कि शरिया कोर्ट एक सुलभ,त्वरित,और सस्ता सुलह सफाई केंद्र है जिसकी इजाज़त भारतीय कानून देता है।यह गरीबों, महिलाओं,शोषितों के लिए वरदान है। और भारतीय कोर्ट पर से केस के बोझ को कम करने में सहायक है
साभार वॉइस हिन्दी आप हमसे Facebook Twitter Instagram YouTube Google Plus पर भी जुड़ सकते हैं
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