मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय को आरटीआई से जानकारी मिली है कि नोटबंदी के दौरान ~Ravish Kumar The Fakharpur City
मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय को आरटीआई से जानकारी मिली है कि नोटबंदी के दौरान देश में सबसे
अधिक पुराने नोट गुजरात के दो सहकारी बैंकों में बदले गए. एक का नाम है अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक जिसके अध्यक्ष बीजेपी के अमित शाह हैं. यहां पर 5 दिनों में 750 करोड़ जमा हुए. दूसरा बैंक है राजकोट का ज़िला सहकारी बैंक जहां 693 करोड़ रुपये जमा हुए. इस बैंक के चेयरमैन गुजरात के कबीना मंत्री जयेशभाई विट्ठलभाई रडाडिया हैं. पांच दिनों में 1300 करोड़ से अधिक के पांच सौ और एक हज़ार के नोट इन दो बैंकों की शाखाओं में बदले गए.
मनोरंजन रॉय को यह सूचना आरटीआई के ज़रिए ग्रामीण बैंकों की शीर्ष संस्था नाबार्ड ने दी है. इस ख़बर को कई मीडिया वेबसाइट ने छापा है. अमित शाह के चेयरमैनी वाले बैंक में 5 दिन में सबसे अधिक 750 करोड़ जमा हुए हैं तो ज़ाहिर है शक भी होना था और राजनीति भी होनी थी.
हमने बस इतना पता किया कि क्या वाकई पांच दिनों में 750 करोड़ रुपये जमा हो सकते हैं? बैंकों में काम करने वाले कुछ अनुभवी कैशियरों से बात की. विवाद का आधार या अंजाम जो भी हो, यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं है कि 750 करोड़ रुपये गिनने में कितना वक्त लग सकता है, कितनी मशीनें लगेंगी और कितने कैशियर लगेंगे? हम यहां आपको साफ-साफ बता देना चाहते हैं कि इस बारे में हमारी कोई विशेषज्ञता नहीं है. हम कैशियरों की बातचीत के आधार पर लिख रहे हैं. इससे जुड़ी किसी भी राय का हम स्वागत करेंगे.
एक कैशियर ने बताया कि नोटबंदी के दौरान 11 से 13 नवंबर 2016 के बीच वे और उनके तीन साथी कैशियर सुबह आठ बजे से रात के 10 बजे तक नोट गिनते रहे तब भी चार दिनों में 26 करोड़ ही गिन पाए. जबकि वे खुद को नोट गिनने के मामले में काफी दक्ष मानते हैं. नाम न बताने की शर्त पर कैशियर ने कहा कि हमें सिर्फ नोट नहीं गिनने होते हैं, नोटों की गड्डी को एक तरफ से सजाना होता है, उसे उलट-पलटकर देखना होता है, फिर उपभोक्ता से बात करनी पड़ती है, फटे पुराने और असली-नकली चेक करने पड़ते हैं, गिनती सही हो इसकी तसल्ली के लिए दो-दो बार गिनते हैं. इसके बाद गिने गए नोट की फाइल में एंट्री होती है. इन सबमें एक उपभोक्ता के साथ दो से पांच मिनट और कई बार उससे भी ज़्यादा लग सकता है. पर ध्यान रखना चाहिए कि नोट गिनने की मशीन सभी जगह नहीं होती है. आप इस मशीन को तीन से चार घंटे ही लगातार चला सकते हैं क्योंकि उसके बाद गरम हो जाती है. गरम होने के बाद गिनती कम होने लगती है. तब मशीन को कुछ देर के लिए आराम देना पड़ता है. बाकी समय को जोड़ लें तो आप सिर्फ नोट नहीं गिन रहे होते हैं, लंच भी करते हैं, चाय भी पीते हैं और शौचालय के लिए भी कुर्सी से उठते हैं.
हमने इन कैशियरों से पूछा कि अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक के तीन ज़िलों में 190 ब्रांच हैं. क्या 190 ब्रांच में 750 करोड़ पुराने नोट गिनकर बदले जा सकते हैं या जमा हो सकते हैं? तो उन्होंने हमें एक हिसाब बताया. कहा कि 1000 के 40,000 पैकेट और 500 के 80,000 पैकेट मिलाकर 750 करोड़ होते हैं. इस तरह से सवा लाख पैकेट गिनने के लिए 500 से 800 कैशियरों और इतनी ही मशीनों की ज़रूरत पड़ेगी. किसी भी सहकारी बैंक के पास न तो इतने कैशियर होते हैं और न ही इतनी मशीनें और न ही उनका प्रशिक्षण ऐसा होता है क्योंकि सहकारी बैंकों में मुश्किल से रोज़ आठ-दस लाख ही जमा होते होंगे.
कैशियरों ने कहा कि 190 ब्रांच के हिसाब से औसतन 4 करोड़ की राशि होती है जिसे गिनना नामुमकिन है. मुमकिन है कि इस हिसाब-किताब में त्रुटि हो, लेकिन यह जानने की कोशिश करना ही दिलचस्प है कि बैंकों की शाखा में नोट गिनने की क्षमता कैसी होती है. हमने की और आपको बताई. इससे आप इस सवाल तक पहुंच सकते हैं कि क्या वाकई इतने नोट गिने गए होंगे, मगर इससे सीधे इस सवाल तक नहीं पहुंच सकते कि किस खाते में किसने पैसे जमा कराए. ये जांच का विषय होता है जिसका सिलेबस भारत में शायद ही पूरा होता है.
वैसे चिंता न करें. अमित शाह का नाम आया इसलिए कई वेबसाइट ने खबर छापकर हटा ली और कुछ ने ख़बर छापकर नहीं हटाई. कांग्रेस ने जांच की मांग की तो बीजेपी ने चुप्पी साध ली. वैसे बीजेपी के एक सांसद ने इन आरोपों को बेतुका कहा है. आरटीआई कार्यकर्ता ने भी आज कुछ नहीं बोला, जिससे पता चले कि उन्हें कहां और किस बात का शक है. नाबार्ड ने खंडन किया है कि कोई गड़बड़ी नहीं हुई है. अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक देश के श्रेष्ठ सहकारी बैंकों में अव्वल है. नोटबंदी के दौरान यहां के हरेक खातेदार के खाते में औसतन 46, 795 रुपये ही जमा हुए है जो कि बहुत नहीं है.
इसी तरह के आरोप नोटबंदी के दौरान खूब उठे थे कि लोगों ने अपना कालाधन बदल लिया. सरकार ने उस वक्त ऐसे खातों की जांच की बात की थी और खुद प्रधानमंत्री ने ज़ोरशोर से इसका ऐलान भी किया था. इसी परंपरा में इसकी भी जांच हो सकती थी मगर अब जब सब चुप ही हो गए हैं तो कौन किससे पूछे?
NDTV हिंदी से
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फ़ोटो साभार गूगल |
अधिक पुराने नोट गुजरात के दो सहकारी बैंकों में बदले गए. एक का नाम है अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक जिसके अध्यक्ष बीजेपी के अमित शाह हैं. यहां पर 5 दिनों में 750 करोड़ जमा हुए. दूसरा बैंक है राजकोट का ज़िला सहकारी बैंक जहां 693 करोड़ रुपये जमा हुए. इस बैंक के चेयरमैन गुजरात के कबीना मंत्री जयेशभाई विट्ठलभाई रडाडिया हैं. पांच दिनों में 1300 करोड़ से अधिक के पांच सौ और एक हज़ार के नोट इन दो बैंकों की शाखाओं में बदले गए.
मनोरंजन रॉय को यह सूचना आरटीआई के ज़रिए ग्रामीण बैंकों की शीर्ष संस्था नाबार्ड ने दी है. इस ख़बर को कई मीडिया वेबसाइट ने छापा है. अमित शाह के चेयरमैनी वाले बैंक में 5 दिन में सबसे अधिक 750 करोड़ जमा हुए हैं तो ज़ाहिर है शक भी होना था और राजनीति भी होनी थी.
हमने बस इतना पता किया कि क्या वाकई पांच दिनों में 750 करोड़ रुपये जमा हो सकते हैं? बैंकों में काम करने वाले कुछ अनुभवी कैशियरों से बात की. विवाद का आधार या अंजाम जो भी हो, यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं है कि 750 करोड़ रुपये गिनने में कितना वक्त लग सकता है, कितनी मशीनें लगेंगी और कितने कैशियर लगेंगे? हम यहां आपको साफ-साफ बता देना चाहते हैं कि इस बारे में हमारी कोई विशेषज्ञता नहीं है. हम कैशियरों की बातचीत के आधार पर लिख रहे हैं. इससे जुड़ी किसी भी राय का हम स्वागत करेंगे.
एक कैशियर ने बताया कि नोटबंदी के दौरान 11 से 13 नवंबर 2016 के बीच वे और उनके तीन साथी कैशियर सुबह आठ बजे से रात के 10 बजे तक नोट गिनते रहे तब भी चार दिनों में 26 करोड़ ही गिन पाए. जबकि वे खुद को नोट गिनने के मामले में काफी दक्ष मानते हैं. नाम न बताने की शर्त पर कैशियर ने कहा कि हमें सिर्फ नोट नहीं गिनने होते हैं, नोटों की गड्डी को एक तरफ से सजाना होता है, उसे उलट-पलटकर देखना होता है, फिर उपभोक्ता से बात करनी पड़ती है, फटे पुराने और असली-नकली चेक करने पड़ते हैं, गिनती सही हो इसकी तसल्ली के लिए दो-दो बार गिनते हैं. इसके बाद गिने गए नोट की फाइल में एंट्री होती है. इन सबमें एक उपभोक्ता के साथ दो से पांच मिनट और कई बार उससे भी ज़्यादा लग सकता है. पर ध्यान रखना चाहिए कि नोट गिनने की मशीन सभी जगह नहीं होती है. आप इस मशीन को तीन से चार घंटे ही लगातार चला सकते हैं क्योंकि उसके बाद गरम हो जाती है. गरम होने के बाद गिनती कम होने लगती है. तब मशीन को कुछ देर के लिए आराम देना पड़ता है. बाकी समय को जोड़ लें तो आप सिर्फ नोट नहीं गिन रहे होते हैं, लंच भी करते हैं, चाय भी पीते हैं और शौचालय के लिए भी कुर्सी से उठते हैं.
हमने इन कैशियरों से पूछा कि अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक के तीन ज़िलों में 190 ब्रांच हैं. क्या 190 ब्रांच में 750 करोड़ पुराने नोट गिनकर बदले जा सकते हैं या जमा हो सकते हैं? तो उन्होंने हमें एक हिसाब बताया. कहा कि 1000 के 40,000 पैकेट और 500 के 80,000 पैकेट मिलाकर 750 करोड़ होते हैं. इस तरह से सवा लाख पैकेट गिनने के लिए 500 से 800 कैशियरों और इतनी ही मशीनों की ज़रूरत पड़ेगी. किसी भी सहकारी बैंक के पास न तो इतने कैशियर होते हैं और न ही इतनी मशीनें और न ही उनका प्रशिक्षण ऐसा होता है क्योंकि सहकारी बैंकों में मुश्किल से रोज़ आठ-दस लाख ही जमा होते होंगे.
कैशियरों ने कहा कि 190 ब्रांच के हिसाब से औसतन 4 करोड़ की राशि होती है जिसे गिनना नामुमकिन है. मुमकिन है कि इस हिसाब-किताब में त्रुटि हो, लेकिन यह जानने की कोशिश करना ही दिलचस्प है कि बैंकों की शाखा में नोट गिनने की क्षमता कैसी होती है. हमने की और आपको बताई. इससे आप इस सवाल तक पहुंच सकते हैं कि क्या वाकई इतने नोट गिने गए होंगे, मगर इससे सीधे इस सवाल तक नहीं पहुंच सकते कि किस खाते में किसने पैसे जमा कराए. ये जांच का विषय होता है जिसका सिलेबस भारत में शायद ही पूरा होता है.
वैसे चिंता न करें. अमित शाह का नाम आया इसलिए कई वेबसाइट ने खबर छापकर हटा ली और कुछ ने ख़बर छापकर नहीं हटाई. कांग्रेस ने जांच की मांग की तो बीजेपी ने चुप्पी साध ली. वैसे बीजेपी के एक सांसद ने इन आरोपों को बेतुका कहा है. आरटीआई कार्यकर्ता ने भी आज कुछ नहीं बोला, जिससे पता चले कि उन्हें कहां और किस बात का शक है. नाबार्ड ने खंडन किया है कि कोई गड़बड़ी नहीं हुई है. अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक देश के श्रेष्ठ सहकारी बैंकों में अव्वल है. नोटबंदी के दौरान यहां के हरेक खातेदार के खाते में औसतन 46, 795 रुपये ही जमा हुए है जो कि बहुत नहीं है.
इसी तरह के आरोप नोटबंदी के दौरान खूब उठे थे कि लोगों ने अपना कालाधन बदल लिया. सरकार ने उस वक्त ऐसे खातों की जांच की बात की थी और खुद प्रधानमंत्री ने ज़ोरशोर से इसका ऐलान भी किया था. इसी परंपरा में इसकी भी जांच हो सकती थी मगर अब जब सब चुप ही हो गए हैं तो कौन किससे पूछे?
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